आँख में जो किरकिरी बनकर खाले है ।
बेहया की पौध से फूले - फले है ।
जिन्दगी की तल्ख़ सच्चाई कहेंगे ।
जो अँधेरे इन चरागों के तले है ।
ये बुलंदी बर्फ की मीनार सी है ।
लोग धोखा खा गए कितने भले है ।
घोल कर पी जायेगा उनको ज़माना ।
इस सदी में जो कि मिसरी के डले है ।
किस कदर बदशक्ल थी नजदीकियां वे ।
और कितने खूबसूरत फासले है ।
वे मुझे विषदंश देंगे जानता हूँ ।
क्योंकि मेरी आस्तीनों में पले हैं |
चन्द्रमा पैर पाँव रखती इस सदी में ।
पस्त क्यों इंसानियत के हौसले है ।
आप पर उपदेश में बेहद कुशल हैं ।
होम करते हाथ ये अपने जले है ।
------- प्रो. विद्या सागर वर्मा
वाह...श्रीमान, बड़ा ही बेबाक अन्दाज है शायरी का..." जिन्दगी की तल्ख़ सच्चाई कहेंगे ।
ReplyDeleteजो अँधेरे इन चरागों के तले है ।"
" घोल कर पी जायेगा उनको ज़माना ।
इस सदी में जो कि मिसरी के डले है ।"
खास तौर से ये दो मिसरे लाजवाब हैं...गजब पढ़वाने का शुक्रिया....!
श्रीमान जी ,,,मेरी कविताओं के नये नवेले ब्लॉग "मुख्तसर" पर भी गौर फरमाइये ...आपके मार्गदर्शन का आकांक्षी हूँ...
ReplyDeleteshuklaabhishek147.blogspot.com/?m=0