आँख में जो किरकिरी बनकर खाले है ।
बेहया की पौध से फूले - फले है ।
जिन्दगी की तल्ख़ सच्चाई कहेंगे ।
जो अँधेरे इन चरागों के तले है ।
ये बुलंदी बर्फ की मीनार सी है ।
लोग धोखा खा गए कितने भले है ।
घोल कर पी जायेगा उनको ज़माना ।
इस सदी में जो कि मिसरी के डले है ।
किस कदर बदशक्ल थी नजदीकियां वे ।
और कितने खूबसूरत फासले है ।
वे मुझे विषदंश देंगे जानता हूँ ।
क्योंकि मेरी आस्तीनों में पले हैं |
चन्द्रमा पैर पाँव रखती इस सदी में ।
पस्त क्यों इंसानियत के हौसले है ।
आप पर उपदेश में बेहद कुशल हैं ।
होम करते हाथ ये अपने जले है ।
------- प्रो. विद्या सागर वर्मा